Sunday, December 9, 2007

हिन्दी ब्लागिंग मार्गदर्शन 5

पिछले लेख में मैंने जाल पर हिन्दी-लेखन के लिये उपलब्ध सबसे आधुनिक औजार “हिन्दी केफे” का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया था. केफे के जालस्थल से उस औजार को अपने संगणक पर उतार कर उसका उपयोग प्रारंभ कर दीजिये. जब तक उसका परिवर्धित संस्करण आ जायगा तब तक उसके उपयोग के लिये आपकी तय्यारी पूरी रहेगी.

हिन्दी मे लिखना शुरू करते ही एक बडा प्रश्न हर लेखक को परेशान करता है: यूनिकोड के प्रयोग की कितनी भी कोशिश क्यों न करें, कुछ अक्षर जरूर खण्डित हो जाते हैं. यहां तक कि जाने-माने एवं अनुभवी चिट्‍ठाकरों के चिट्ठों पर भी उनके चिट्ठे के या लेखों के शीर्षक यदा कदा खण्डित ही दिखते हैं. मात्रायें गडबड नजर आती हैं. यह किसी भी तरह से एक सुखद अनुभव नही कहा जा सकता, एवं हर चिट्ठाकर को इसका कारण एवं हल मालूम होना चाहिये.

यूनिकोड: अंतर्जाल पर किसी भी हिन्दी फांट में लिखा जा सकता है, और पढनेवाला उसे पढ लेगा बशर्ते उसके संगणक पर वह फांट मौजूद हो, और यदि उसने अपने संगणक में हिन्दी अक्षर प्रदर्शित करने की सुविधा स्थापित कर रखी हो. यह आसान काम नही है. फांट को किसी जालस्थल से अपने संगणक पर उतार कर स्थापित करना कठिन नहीं है, पर हर व्यक्ति के लिये एक समान आसान भी नही है. इसी कारण यूनिकोड फांट के उपयोग को महत्व दिया जाता है क्योंकि उस भाषा का का कोई भी फाट पाठक के संगणक पर हो तो वह बिना किसी तय्यारी के उसे पढ सकेगा. लेकिन यह भी व्यावहारिक तल पर उतना आसान नही है.

संगणक द्वार एक यूनिकोड फांट के बदले दूसरे का अपने-आप उपयोग सिद्धांत स्तर तक तो ठीक है, लेकिन व्यावहारिक तल पर अभी भी पूरी तरह नहीं उतर पाया है. अंग्रेजी-भाषियों द्वारा अंग्रेजी में उपयोग करने के लिये विकसित संगणक उतनी आसानी से गैर-अंग्रेजी भाषाओं के प्रति अपने आप को समर्पित नहीं करता है. इस कारण अभी भी हिन्दी के भिन्न यूनिकोड फांटों में पूर्ण सामंजस्य नही है. अत: यदि कोई चिट्ठाकर “मंगल” के अलावा किसी भी हिन्दी यूनिकोड फांट का प्रयोग अपने चिट्ठे पर करेगा तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वह सब संगणकों पर अखण्डित दिखेगा. सिर्फ एक “मंगल” ही है जिसे संगणक पूर्ण रूप से स्वीकार एवं प्रदर्शित करते हैं. यह है समस्या की जड.

एक और समस्या है: चिट्ठाकार सिर्फ “मंगल” का ही प्रयोग करे तो भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वह मंगल ही रहेगा. चिट्ठे को चलाने वाला सफ्टवेयर उपभोक्ता की जानकारी के बिना कई बार उसको बदल देता है. मेरे चिट्ठे में यह अकसर होता रहता है, और मुझे उसके कारण अतिरिक्त प्रयास करना पडता है. अखण्डित चिट्ठा चाहते हैं तो आपको भी इस की जानाकारी रखनी होगी. इन विषयों के बारे में विस्तार से तकनीकी चर्चा (सरल तरीके से) अगले चिट्ठे में करेंगे.

आपने चिट्ठे पर विदेशी हिन्दी पाठकों के अनवरत प्रवाह प्राप्त करने के लिये उसे आज ही हिन्दी चिट्ठों की अंग्रेजी दिग्दर्शिका चिट्ठालोक पर पंजीकृत करें. मेरे मुख्य चिट्टा सारथी एवं अन्य चिट्ठे तरंगें एवं इंडियन फोटोस पर भी पधारें. चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: विश्लेषण, आलोचना, सहीगलत, निरीक्षण, परीक्षण, सत्य-असत्य, विमर्श, हिन्दी, हिन्दुस्तान, भारत, शास्त्री, शास्त्री-फिलिप, सारथी, वीडियो, मुफ्त-वीडियो, ऑडियो, मुफ्त-आडियो, हिन्दी-पॉडकास्ट, पाडकास्ट, analysis, critique, assessment, evaluation, morality, right-wrong, ethics, hindi, india, free, hindi-video, hindi-audio, hindi-podcast, podcast, Shastri, Shastri-Philip, JC-Philip

1 comment:

Sanjay Karere said...

चलिए आपकी सलाह गांठ बांध लीं है. ध्‍‍यान रखेंगे. मैंने एक अन्‍य समस्‍या के बारे में जिक्र किया था, कृपया कुछ मदद संभव हो तो करें.