Monday, December 17, 2007

अपना चिट्ठा/जालस्थल लुटेरों से बचायें 4

पिछले लेख में मैं ने नियमित रूप से अपने चिट्ठे/जालस्थल की प्रतिलिपि बना कर उसे एक सुरक्षित स्थान पर रखने की जरूरत पर जोर दिया था. इस लेखन परम्परा के अन्य लेख पढने पर आपको पता चल जायगा कि यह एक छोटा सा काम (ईश्वर न करे) लुट जाने पर आपका कैसा मददगार बन जायगा.

अब आते हैं लूट के पहले तरीके पर. आप में से बहुत से हिन्दी चिट्ठाकरों ने मुफ्त जालस्थलों पर चिट्ठे बना रखें हैं. इसमें कोई बुराई नहीं है, बशर्ते आपके लेखन की कीमत आपकी नजर में नगण्य है. लेकिन यदि साल भर में आपके द्वारा अपने चिट्ठे के रखरखाव पर एवं लेखन पर निवेश किये गये 300 से लेकर 1500 घंटे आपके लिये कोई मायना रखते हैं तो आपको हमेशा याद रखना चाहिये कि मुफ्त जालजगत में अकसर रक्षक ही भक्षक हो जाता है. यदि आप नियमित रूप से अपने चिट्ठे/जालस्थल की प्रतिलिपि नहीं बनाते तो एक दिन अचानक पता चलेगा कि आपका जालघर भी लुट गया, एवं वहां बडी मेहनत से आपने जो कुछ लिखासंवारा था वह भी खो गया है.

आप शायद कहेंगे कि आपने बहुत प्रसिद्ध एवं आर्थिक रूप से समृद्ध कम्पनियों के मुफ्त जालस्थल पर अपना चिट्ठा स्थापित किया है अत: आपको कोई डर नहीं है. सच है, जब तक आप जालसच्चाईयों से अज्ञान रहेंगे तब तक आपको कोई डर नहीं है. लेकिन जिस दिन वह सच्चाई मूंह बाये आपके सामने खडी होगी, तब स्थिति बदल जायेगी. असल बात यह है कि जाल सम्पत्ति एक “वास्तविक” सम्पत्ति नहीं है. यह सिर्फ एक “आभासी” (virtual) सम्पत्ति है जो भाप के समान कभी भी लोप हो सकती है. इसकी सूचना उस “युजर एग्रीमेंट” मे छिपा होता है, जिसे अधिकतर लोग बिना पढे या बिना समझे मान लेते है. इनमे से सब में यह शर्तें होती हैं कि मूल कम्पनी कभी भी आपको दी गई सुविधा, बिना कारण बताये, बिना समय दिये, बिना किसी क्षतिपूर्ति के, आपसे छीन सकती है. आपको मुफ्त में यह अभासी/वर्चुवल “जमीन” देने से पहले आपसे यह करार भी करवा लिया जाता है कि आप दाता से कभी भी, किसी भी तरह का क्षतिपूरण नहीं मांगेगे.

इन करारों के अधार पर बहुत सी बडी कम्पनियों ने लाखों मुफ्तवासियों के जालस्थल पिछले दस सालों में बिना किसी तरह की सूचना दिये छिना लिये हैं. यह मेरा अपना अनुभव है. यह कैसे हुआ, क्यों हुआ आदि हम अगले लेखों में देखेंगे. हां, यदि कोई आपको यह भरोसा दिलाने की कोशिश करे कि यह सब गप है, तो उसे मानना न मानन आपके ऊपर है. इस तरह के झूठे विश्वास के कारण मेरे कम से कम 4 जालस्थल लुट चुके हैं (मुफ्त सर्वरों से). अब मैं सतर्क हो गया हूं एवं मेरी इच्छा यह है कि आप मेरे अनुभव से सीख ले ल

आपने चिट्ठे पर विदेशी हिन्दी पाठकों के अनवरत प्रवाह प्राप्त करने के लिये उसे आज ही हिन्दी चिट्ठों की अंग्रेजी दिग्दर्शिका चिट्ठालोक पर पंजीकृत करें. मेरे मुख्य चिट्टा सारथी एवं अन्य चिट्ठे तरंगें एवं इंडियन फोटोस पर भी पधारें. चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: विश्लेषण, आलोचना, सहीगलत, निरीक्षण, परीक्षण, सत्य-असत्य, विमर्श, हिन्दी, हिन्दुस्तान, भारत, शास्त्री, शास्त्री-फिलिप, सारथी, वीडियो, मुफ्त-वीडियो, ऑडियो, मुफ्त-आडियो, हिन्दी-पॉडकास्ट, पाडकास्ट, analysis, critique, assessment, evaluation, morality, right-wrong, ethics, hindi, india, free, hindi-video, hindi-audio, hindi-podcast, podcast, Shastri, Shastri-Philip, JC-Philip

No comments: